जन्मदिन को बनाया जीवनदान का माध्यम
भदोही के अनंत देव पांडेय ने 26वें जन्मदिन पर किया 28वीं बार रक्तदान
समाज सेवा के प्रति युवाओं की सोच बदलने वाली एक सशक्त मिसाल
भदोही:- जहां आज के दौर में जन्मदिन का मतलब पार्टियों, उपहारों और सोशल मीडिया पर दिखावे तक सीमित रह गया है, वहीं भदोही जिले के डेरवां गांव निवासी अनंत देव पांडेय ने इस परंपरा को एक नई दिशा दी है। उन्होंने 5 जुलाई को अपने 26वें जन्मदिन पर 28वीं बार रक्तदान कर यह साबित किया कि सेवा और संवेदना से बढ़कर कोई उत्सव नहीं हो सकता।
अनंत का मानना है कि जन्मदिन केवल व्यक्तिगत खुशी का दिन नहीं, बल्कि किसी दूसरे के जीवन में उम्मीद जगाने का माध्यम बनना चाहिए। वह इस परंपरा को पिछले दस वर्षों से निभा रहे हैं।
एक संकल्प, जो बना जीवन का हिस्सा
अनंत की सेवा यात्रा की शुरुआत वर्ष 2015 में हुई, जब वह मात्र 16 वर्ष के थे। उनके एक मित्र सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे और तत्काल रक्त की आवश्यकता थी। उस कठिन घड़ी में उन्होंने पहली बार रक्तदान किया। उस अनुभव ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। तब से उन्होंने यह तय कर लिया कि हर वर्ष अपने जन्मदिन पर रक्तदान करेंगे — और तब से यह परंपरा एक आदत बन गई।
आज स्थिति यह है कि जरूरत पड़ने पर अनंत समय और दूरी की परवाह किए बिना रक्तदान के लिए तत्पर रहते हैं। उनके लिए यह एक भावनात्मक जिम्मेदारी बन चुकी है।
समाज के लिए प्रेरणास्रोत
अनंत का कार्य केवल व्यक्तिगत नहीं है। वह अपने अनुभवों को साझा कर युवाओं को प्रेरित भी करते हैं। सोशल मीडिया, जनसंपर्क और संवाद के माध्यम से वह रक्तदान को लेकर जागरूकता फैलाते हैं और सैकड़ों युवाओं को इस अभियान से जोड़ चुके हैं।
उनकी अगुवाई में समय-समय पर सामूहिक रक्तदान शिविरों का आयोजन भी होता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं। कई ऐसे युवा हैं, जिन्होंने अपने जीवन का पहला रक्तदान अनंत की प्रेरणा से ही किया।
जन्मदिन का नया अर्थ
अपने हर जन्मदिन पर अनंत न केवल रक्तदान करते हैं, बल्कि पौधरोपण कर पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देते हैं। वे मानते हैं कि एक जन्मदिन पर यदि एक जीवन बच जाए और एक पौधा धरती पर जुड़ जाए, तो यह दिन वास्तव में सार्थक हो जाता है।
उनके अनुसार,
“जन्मदिन की खुशी केवल अपने लिए नहीं, किसी और की जिंदगी में रोशनी बनकर भी मनाई जा सकती है।”
भ्रांतियों को तोड़ने की पहल
रक्तदान को लेकर समाज में कई मिथक और भ्रम व्याप्त हैं — जैसे रक्तदान से कमजोरी आती है, बार-बार रक्तदान हानिकारक है, आदि। अनंत लगातार इन भ्रांतियों को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। वे स्कूलों, कॉलेजों और गांवों में जागरूकता सत्र आयोजित करते हैं, ताकि लोग न केवल रक्तदान करें, बल्कि इसके पीछे के वैज्ञानिक तथ्यों को भी समझें।
आधी रात का एक फोन कॉल
ऐसे कई मौके आए हैं जब अनंत को अचानक रक्त की आवश्यकता की सूचना मिली और उन्होंने तुरंत मदद की। एक बार रात 11 बजे उन्हें एक मरीज के लिए तत्काल रक्त की जरूरत की खबर मिली। बिना समय गंवाए वे रक्तदान के लिए निकल पड़े। उस परिवार की आंखों में आंसू और चेहरे पर राहत देखकर अनंत कहते हैं, “उसी पल लगता है कि जीवन सही राह पर चल रहा है।
सम्मान और सराहना
अनंत के इस सामाजिक योगदान को कई संस्थानों द्वारा सराहा गया है। उन्हें विभिन्न मंचों पर सम्मानित भी किया गया है, लेकिन उनके अनुसार, सबसे बड़ा पुरस्कार वह मुस्कान होती है, जो किसी जरूरतमंद की आंखों में दिखाई देती है।
अनंत देव पांडेय की कहानी केवल एक युवक की नहीं, बल्कि एक सोच की है, एक ऐसी सोच जो यह बताती है कि व्यक्तिगत अवसरों को सामाजिक जिम्मेदारी में बदला जा सकता है। 26 वर्ष की आयु में 28 बार रक्तदान कर उन्होंने यह सिद्ध किया है कि सेवा भावना, संवेदनशीलता और निरंतरता से कोई भी व्यक्ति समाज में बड़ा परिवर्तन ला सकता है।
उनकी यह पहल आज के युवाओं के लिए प्रेरणा बन रही है।
क्योंकि जन्मदिन पर दिया गया एक यूनिट रक्त किसी के जीवन की सबसे बड़ी सौगात हो सकता है।
कछवां से शिवम मोदनवाल की रिपोर्ट
” Kachhwa Today Mirzapur“